किनारे पर आकर
*सविता दास
मन का समंदर,अशांत सा
विचारों की विशालता लिए
परेशान सा
व्याकुल आवेगों की लहरे
छूने को नभ तरसती
नाकाम कोशिशें
फिर खारेपन में मिलती
समाएं अपनी गहराई में
कितने वर्जित क्षण
नदियाँ फिर मिलती आशाओं की
लेकर अपनापन
बैरी चाँद भी आता है
मानो मुहं चिढ़ाने
अनगिनत ज्वार- भाटा
उपहार दे जाने
मन फिर भी
बूंदों में बादलों की
नई आशाओं का
संचार करना चाहता है
किनारे पर आकर यूंहीं
किसी तथागत के
चरण छूना चाहता है।
*सविता दास,तेज़पुर ,असम
CATEGORIES कविता
सविता जी उम्दा व भावयुक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई
*राजकुमार जैन राजन
उम्दा रचना के लिए हार्दिक बधाई
अच्छी है।
किनारे पर आकर, कविता मे सा सबिता दास ने अच्छे भाव प्रकट किया है, एक उत्तम रचना की कवियित्री को हार्दिक बधाई देते हैं
अति उत्तम