दक्षिण की निर्भया के संदर्भ में दोहे
*प्रो.शरद नारायण खरे*
एक बार फिर से जगा ,मानव बन हैवान ।
उसकी पशुता ने हरा ,नारी जीवन,मान ।।
हद से गुज़री क्रूरता,दक्षिण का यह कृत्य ।
चंदा भी रोने लगा,रोता है आदित्य ।।
वह भोली सी डॉक्टर,मानव सेवा लक्ष्य ।
हिंसक नर ने कर लिया,उस देवी को भक्ष्य ।।
रौंद दिया बूटों तले,कलिका का संसार ।
फांसी में ही शेष अब,’शरद’ न्याय का सार ।।
सामूहिक दुष्कृत्य यह,सुनकर झुकते शीश ।
दोषी का संहार हो,विनय कौशलाधीश ।।
क्रूर बना मानव बहुत,तनिक न आई लाज ।
कैसे उसने यह किया,सोचे सकल समाज ।।
दिन पर दिन अब बढ़ रहे,महिला प्रति दुष्कर्म ।
नारी की रक्षा पले,हम सबका यह धर्म ।।
चर्चा में आया नगर,आज हैदराबाद ।
पर सिर सबके झुक गये,है सबको अवसाद ।।
क्योंकर नर कामी हुआ,तजकर पावन रूप ।
वह तो तम में खो गया,सिसके उजली धूप ।।
मृत्युदंड ही कारगर,यही आज हुंकार ।
ये दानव रखते नहीं,जीने का अधिकार ।।
*प्रो.शरद नारायण खरे
मंडला(मप्र)-481661