लाडो मेरी घर लौट के आजा…
*सुनीता शानू*

लाडो मेरी घर लौट के आजा…
न वो गांव है न कस्बे है ऐसे
शहरों में भी नहीं है शराफत
न दिन है सुनहरे न शामें सुहानी
रातों को घूमें दरिंदे निशाचर
घनी धूप में कहीं झुलस न जाए
शाम भी तुझसे लिपट न जाए
रात की कालिख बढ़ती जाए
लाडो मेरी घर लौट के आजा
आजा कि तुझको दुनिया दिखा दूं
दुनिया की सारी शक्लें दिखा दूं
औरत है तूं तुझको दुर्गा बना दूं
रानी लक्ष्मी का पाठ पढ़ा दूं
आज पढ़ा दूं तुझको मैं गीता
अग्नि में जाए न अब कोई सीता
लाडो मेरी घर लौट के आजा
सीख ले दुनिया की रीत ये बिटिया
लड़कर ही मिलती जीत है बिटिया
मर कर नहीं कोई कुछ कर पाया है
जिंदा है उसकी ही जीत है बिटिया
अगर न बदले तो मिटा दे ये दुनिया
तूं जलने से पहले जला दे ये दुनिया
लाडो मेरी घर लौट के आजा
*सुनीता शानू
दिल्ली
CATEGORIES कविता