सामाजिक सरोकारों ,साहित्य और मनोरंजन के संवाहक है दिवाली अंक

शाश्वत सृजन समाचार
इंदौर । सन 1909 से निरंतर प्रकाशित हो रहे मराठी दिवाली अंकों की समृद्ध परंपरा ने जहां समय समय पर सामाजिक सरोकारों को सार्थकता से मुखर किया है वहीं वे कई लेखकों को स्थापित करने और साहित्य को समृद्ध करने का सशक्त जरिया बने है। सैकड़ों की तादात में प्रकाशित हो रहे मराठी दिवाली अंकों ने काल के अनुरूप सामाजिक प्रबोधन का भी महत्वपूर्ण कार्य किया है।
उक्त विचार आपले वाचनालय और लिवा साहित्य सेवा समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अलहदा समीक्षात्मक कार्यक्रम ‘दिवाळी अंकावर बोलू काही’ में सर्वश्री शरद सरवटे , प्रफुल्ल कस्तूरे और मोहन बांडे ने अपने अतिथीय उद्बोधन में व्यक्त किये। इस वर्ष अमराठी प्रदेश से प्रकाशित होकर मराठी के दिवाली अंकों में अपनि विशिष्ट पहचान बनाने वाले श्री सर्वोत्तम दिवाली अंक की समग्रता में विवेचना की गई।अश्विन खरे के संपादन में निकलने वाले इस अंक के लेखों ,कविताओं ,कथाओं के अलावा अंक के कला पक्ष पर विश्वनाथ शिरढोणकर , सुषमा अवधूत, डॉ. निशिकांत कोचकर और वसुधा गाडगीळ ने अपने प्रभावी विचार रखे । महाराष्ट्र और उसके बाहर आज भी तकरीबन आठ सौ मराठी दिवाली अंक प्रकाशित हो रहे है। विविधरंगी इन दिवाली अंकों में से हेमांगी, साप्ताहिक सकाळ , आनंदघन , मनोगत,,चपराक, और मैफल जैसे चुनिंदा दिवाली अंकों पर शुभा देशपांडे ,दीप्ति प्रधान , राधिका इंगले ,डॉ. अनुराधा भागवत , रोहिणी कुलकर्णी और अंतरा करवडे ने विस्तृत प्रकाश डाला। प्रारम्भ में सतीश यवतिकर ,संदीप राशिनकर ,अश्विन खरे ,अरविंद जवलेकर ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का सुचारू संचालन श्रीति राशिनकर ने किया। इस अवसर पर हिंदी मराठी के अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित थे ।