कोरोना -एक आपदा या मानवीय भूल

लेख*अलका 'सोनी'
इतिहास स्वयं को दोहराता है । आज कुछ ऐसा ही हम सब महसूस कर रहे हैं । पहले भी कई महामारी का शिकार यह दुनिया बन चुकी है । प्लेग, कोलेरा, हैजा के बाद आज हम सब इस ‘कोरोना’ से जूझ रहे हैं । बड़े-बड़े देशों की जनता और वहां की अर्थव्यवस्था को कुप्रभावित कर अब यह हमारे देश में भी अपने पैर पसार रही है। लाइलाज बनती यह बीमारी कहां से आई ?कहीं इसके पीछे जैविक हथियार बनाने की नापाक मंशा तो शामिल नहीं ? परमाणु बम अपने आप में ही विध्वंसकारी है । उसके बावजूद अब यह दुनिया जैविक हथियारों की ओर मुड़ रही है ।आखिर परमाणु बम के ढेर पर बैठे होने के बाद भी इस जैविक हथियार की जरूरत क्या पड़ी ? यह तो एक विचारणीय प्रश्न है ।लेकिन इसका एक स्याह पक्ष हम सबके सामने मुंह बाए खड़ी है ।
जब हंसती मुस्कुराती दुनिया कराहती नजर आ रही है। लोग डरे सहमे हुए हैं । यातायात ,स्वास्थ्य , शिक्षा और अर्थव्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ा गयी है। स्थिति और भयानक रूप लेने वाली है इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते। बच्चों के स्कूल तो कब के बंद हो चुके थे । परिस्थिति को देखते हुए पहले 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू लगाया गया ।राज्यों की सीमाएं लॉक हुई और अब 21 दिन तक के लिए लॉक-डाउन किया जा रहा है । इन सब का क्या असर पड़ेगा इसका अनुमान लगा सकते हैं आप। आपातकाल को देखते हुए लोग अपने घरों में राशन सामग्री जमा कर रहे हैं ।आश्वासन तो दिया जा रहा है कि किसी चीज की कमी नहीं होने दी जाएगी । लेकिन सामान लाने के लिए कौन अपनी जान खतरे में डालना चाहेगा । जो आर्थिक रूप से सक्षम है वह तो हजारों खर्च कर चीजें जमा लेंगे लेकिन रोज कमाने और खाने वाले मजदूर भला कहां जाएंगे ? क्या करेंगे ?
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क्या वह लोग जो प्रतिदिन चार पैसे कमा कर अपना पेट किसी तरह पाला करते थे उनके पास इस स्थिति से निपटने के लिए पैसे क्या स्वयं ही आ जाएंगे ?स्थिति भयानक और बदतर हो रही है ।अब इस परिस्थिति से कालाबाजारी, लूट और अपराध में भी वृद्धि होगी ।चीजें सड़ेंगी, नष्ट होगी ।खैर अभी जान बचाना ही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है । हमें अपने घर की चौखट पर एक अदृश्य रेखा खींचनी होगी। बाहर घूम रहे कोराना नामक रावण से स्वयं को बचाने के लिए।
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त्रेता युग के उस रावण से भी ज्यादा क्रूर और रक्त -पिपासु है आज का यह रावण कोरोना । उसने तो केवल एक सीता को ही अपना शिकार बनाया था लेकिन इस कलियुगी रावण ने तो किसी को भी नहीं छोड़ा है । इसकी रक्त पिपासा गुणात्मक रूप से बढ़ती ही जा रही है । इस रावण ने तो बच्चे, बूढ़े, जवान ,स्त्री -पुरुष किसी को भी नहीं छोड़ा है । हर साल रावण दहन करने के बाद भी एक बार फिर वह जिंदा होकर अट्टहास कर रहा है ।वर्तमान समय में परिस्थितियों को देखकर लगता है कि शायद यही वो समय है जिसे प्रलय कहते हैं ।इससे केवल ईश्वर और हमारी दृढ़ इच्छाशक्ति ही हमें बचा सकती है । लक्ष्मण बनकर हम लक्ष्मण -रेखा तो खींच लेंगे । साथ ही हम सबको राम बनकर भी इस आधुनिक रावण से लड़ना होगा ।
हम सब के अंदर भगवान का अंश हैं, इसे समझने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता है । इस विपत्ति में प्रभु का स्मरण कर स्वयं को मजबूत करें। एक दूसरे को संबल प्रदान करें। शांति बनाए रखें । इसी से हम इस विपत्ति से लड़ने की शक्ति प्राप्त कर पाएंगे । समय बड़ा कठिन है अभी। पूरे आत्मविश्वास के साथ स्वस्थ और स्वच्छ भारतीय जीवन शैली अपनाएं । मुझे पूरा विश्वास है कि हम यह जंग जरूर जीत लेंगे ।
*अलका ‘सोनी’
बर्नपुर, पश्चिम बंगाल