प्रथम पुण्य स्मरण 22 मई 2020 पर विशेष
मालवा की हास्य व्यंग्य संस्कृति का पर्याय डा. शिव शर्मा

स्मरण लेख*डा. हरीशकुमार सिंह
प्रख्यात व्यंग्यकार स्व. डा शिव शर्मा की आज पहली पुण्य तिथि है । आज के ही दिन 22 मई को अस्सी वर्ष की आयु में आपका देहावसान हुआ । उज्जैन को मालवा की हास्य व्यंग्य संस्कृति से परिपूर्ण टेपा सम्मलेन की सौगात देने वाले शिव शर्मा जी अलग ही मिट्टी के बने थे ।
अपने करियर की शुरुआत डा शिव शर्मा जी ने पत्रकारिता से की तथा नवप्रभात , नईदुनिया , जागरण ,हितवाद , पेट्रियाट से होते हुए आकाशवाणी के संवाददाता वर्षों तक रहे । शहर के माधव कालेज में छात्र के रूप में प्रवेश लिया और राजनीति शास्त्र में पहले स्नातकोत्तर फिर डाक्टरेट कर इसी माधव कालेज में वे प्राध्यापक बने और छात्रों के बीच लोकप्रिय रहे । यह वह समय था जब शहर की राजनीति माधव कालेज से चलती थी और यहाँ के छात्र ,कालेज राजनीति में सक्रिय रहकर , बाकायदा राजनीति में प्रवेश करते थे और तब माधव कालेज , प्राध्यापकों की विद्वता के कारण उनके नाम से जाना जाता था । अब समय आता है कि यही डा शिव शर्मा , माधव कालेज के प्राचार्य बनते हैं । एक छात्र का उसी कालेज में पहले प्राध्यापक होना और फिर प्राचार्य बन जाना ,एक बिरला ही उदहारण रहा है । जाहिर है कि तमाम कठिनाइयों ,संघर्षों से जूझते हुए धीरे धीरे उज्जैन शहर में अपनी जानदार पहचान शिव शर्मा जी ने बनाई । इस प्रकार माधव कालेज का कार्यकाल डा शिव शर्मा के लिए अद्भुत रहा चाहे वह छात्र के रूप में हो या प्राचार्य के रूप में । माधव कालेज के सौ वर्ष पूर्ण होने पर वर्ष 1998 में शताब्दी समारोह के भव्य आयोजन की रूपरेखा और क्रियान्वयन का श्रेय प्राचार्य के रूप में आपको ही मिला ।
टेपा सम्मलेन की जो आज लोकप्रियता है उसके केंद्र में सिर्फ डा शिव शर्मा हैं आज टेपा के आयोजन को पचास वर्ष हो गए और आयोजन के लिए शर्मा जी पूरे वर्ष भर मंथन करते रहते थे । टेपा सम्मलेन के माध्यम से राष्ट्रीय –अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कवि ,पत्रकार ,राजनेता ,कलाकार , टेपा मंच पर आये और डा शिव शर्मा की ख्याति भी फैलती गई । एक बार जो डा शिव शर्मा से मिल लेता है उनका फिर मुरीद हो जाता है ।फिर शुरूआत होती है डा शिव शर्मा के व्यंग्य लेखन की और शिव जी ने व्यंग्य को ही अपने लेखन का केंद्र बना लिया । आपके आठ व्यंग्य संग्रह , एक व्यंग्य एकांकी ,दो उपन्यास प्रकाशित हुए । डा शिव शर्मा ने आजादी के बाद कई सिंहस्थ बहुत नजदीकी से देखे तथा बाबाओं के तम्बुओं का कोना कोना आपने छान मारा और फिर एक व्यंग्य उपन्यास ‘ बजरंगा ‘ लिखा जिसमें बजरंगा राजगढ़ का वही नौजवान था ,जो 1956 में उज्जैन आया और अपनी आँखों देखी घटनाओं को उपन्यास बजरंगा में उतारा । आपको ‘माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान’, ‘ गख्खड़ व्यंग्य सम्मान’ सहित कई सम्मान प्राप्त हुए।
प्रदेश शासन की संभागीय सतर्कता समिति, उज्जैन के सदस्य रहे। आपने सांदीपनी शैक्षणिक न्यास की स्थापना अपने साथी प्राध्यापकों श्री भगवती शर्मा , प्रभात भट्टाचार्य जी , जस्टिस कुरेशी आदि के सहयोग से की और सांदीपनी महाविद्यालय आज संचालित हो रहा है । आपने रूस, लन्दन ,थाईलैंड सहित कई देशों की शैक्षणिक यात्राएं की। जीवन में जज्बा , जीवटता उनसे सीखने की चीज रही ।
उनके जितने सच्चे दोस्त थे उतने ही उनके विरोधियों की कमी नहीं थी मगर वे कभी भी किसी से स्थाई दुश्मनी का भाव नहीं रखते थे । वे अपने हर कार्य को जानबूझकर ही करते थे फिर चाहे वह दोस्ती हो या …….। डा शिव शर्मा जी को यह पता होता है कि किससे कब और कितनी बात करनी है । किसे कब और क्यों सलाम करना है या उसके सलाम का जवाब देना है । अपनी सही और स्पष्ट राय व्यक्त करने में वे कतई देर नहीं करते फिर भले ही सामने वाले को उनकी बात बुरी ही क्यों न लग जाए । उनका हर निर्णय सोचा ,समझा और समय पर खरा उतरने वाला होता था । सदी में कुछ व्यक्तिव अलग ही होते हैं जो एक बार ही जन्म लेते हैं । उन्हें नमन ।
*डा. हरीशकुमार सिंह
(लेखक वरिष्ठ व्यंग्यकार और शाश्वत सृजन के स्तंभकार है)