दर्शकों को जोड़े रखने के लिए दूरदर्शन के पास स्वर्णिम अवसर
समय को भुनाकर ही चुनौती को पार पाएगा दूरदर्शन

लेख*सुशील कुमार नवीन
कोरोना महामारी के चलते इन दिनों दूरदर्शन पर 33 वर्ष बाद रामायण का पुर्नप्रसारण किया जा रहा है।लोकप्रियता वही जो पहले थी। लोकडाउन के चलते न केवल लोगों का समय बेहतर तरीके से गुजर रहा है वहीं आधुनिक पीढ़ी में भी संस्कारों के प्रति भावना पल्लवित हो रही है। हालांकि जल्दबाजी में रामायण के प्रसारण के निर्णय को दूरदर्शन पूरी तरह भुना नहीं पाया है। ऐसे में प्रसंगवश भूल पर सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों की कोई कमी नहीं है।
रामनवमी पर राम जन्म की जगह वनवास और पुत्र शोक में दशरथ के प्राण छोड़ने वाले एपिसोड को समयानुरूप नहीं माना गया। उन लोगों के अनुसार रामनवमी पर राम जन्म का प्रसारण होता तो बेहतर होता। सोमवार को प्रसारित एपिसोड पर भी आलोचकों ने शब्दबेधि बाण चलाने का मौका नहीं छोड़ा। रात के एपीसोड में कई सीन काट दिए गए थे। सुबह वही प्रकरण पूरा दिखाया गया। इस पर यह भी कहा गया कि रामायण दिखानी हो तो पूरी दिखाओ काट छांट कर मत दिखाओ।
संयोगवश बुधवार को हनुमान जयंती थी। दूरदर्शन ने इस बार समय को जान हनुमान की रामायण में महता वाले एपिसोड को दिखाकर एक तरह से मौके पर चौका मार दिया। बालिवध के एपिसोड को दोबारा नहीं दिखाया जाता तो ये संयोग नहीं बन पाता। ‘ को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो’ से हनुमान गुणगान के साथ भूली शक्ति याद दिलाई गई। समुन्द्र पर उड़ान भरने के दौरान आई विपत्तियों को पार कर लंका पहुंच गए। लंकिनी को हराने पर एपिसोड समाप्त हुआ। कुल मिलाकर सुबह और शाम के एपिसोड में हनुमान जी छाए रहे।
मार्केटिंग का सीधा और स्प्ष्ट फंडा समय और अवसर को पूर्ण तरीके से भुनाना है। इसमें जो पिछड़ गया वही पीछे रह गया। बॉलीवुड और मनोरंजन चैनल दर्शकों की नब्ज टटोल उसके अनुरूप ही चलते हैं। 15 अगस्त हो या 26 जनवरी उन दिनों देशभक्ति कार्यक्रम या फिल्मों का प्रसारण होता है। सब टीवी का लोकप्रिय शो ‘तारक महता का उलटा चश्मा’ के ज्यादातर एपिसोड तो देश के प्रमुख पर्व-त्योहार, जयंती, जन्मदिन आदि पर ही होते हैं। बंगाल की दुर्गा पूजा, महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी,पंजाब की लोहड़ी, क्रिसमस, नववर्ष, रक्षाबंधन आदि कोई ऐसा आयोजन नहीं बचता जिसे वो ना भुनाते हो। कोरोना पर भी दो एपिसोड दिखाए जा चुके थे। ये तो नए एपिसोड बन नहीं पा रहे अन्यथा अब तक जेठालाल आदि इस महामारी को अपनी मसखरियों से निपटा ही देते।
बच्चों में खासे लोकप्रिय ‘बालवीर रिटर्न्स’ तो इससे भी दो कदम आगे रहा। पूरी दुनिया इस वायरस के उपचार की खोजबीन में जुटी हुई है। वहीं लोकडाउन से पहले हफ्तेभर के एपिसोड में न केवल वायरस का कारण जाना, वही इसका उपचार ढूंढ पूरी दुनिया को महामारी से बचा भी लिया था। नए एपिसोड बनने जारी रहते तो न ताली-थाली बजाने की जररूत पड़ती और न दीया जलाने की। हर समस्या का समाधान ढूंढने वाले तेनालीरामा को इस बारे में मौका ही नहीं मिल पाया। लोकडाउन से पहले के एपिसोड में वो महारानी के मकड़जाल में उलझे हुए थे। राष्ट्रहित के लिए वो कुछ नहीं कर पाए। तथाचार्य को भी इसका अवसर नहीं मिल पाया। नहीं तो शंकर जी उनके स्वप्न में आते और इससे निपटने का अचूक मन्त्र दे जाते। लगे हाथ आर्थिक लाभ के लिए वो एक बड़ा अनुष्ठान करने में भी पीछे नहीं रहते। ऐसा नहीं है कि टीवी के दूसरे महारथियों के पास इस बीमारी का कोई तोड़ नहीं है। बस बेचारों को अपनी क्रियेटिविटी दिखाने का अवसर ही नहीं मिल पाया।
यहां इन बातों की चर्चा सिर्फ इसलिये कि जिसने वक्त को जीया वही जीता। एक ऐसे समय में जब सभी मनोरंजन कार्यक्रमों के पुराने एपिसोड ही विभिन्न चैनल पर दिखाए जा रहे है। फिल्मों की रिलीजिंग डेट अनिश्चितकाल के लिए टाल दी गई है। ऐसी मृतप्राय दूरदर्शन के लिए रामायण का प्रसारण होना किसी संजीवनी से कम नहीं है। दर्शकों को फिर से अपने साथ जोड़े रखने के लिए दूरदर्शन को एक-नएक कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा। समय के साथ चलना होगा।आज दर्शक फिर से रामायण, महाभारत के साथ उसी रुचि से शक्तिमान, देख भाई देख, श्रीमान-श्रीमती,सर्कस, चाणक्य आदि देख रहे हैं। ऐसे में दूरदर्शन प्रबंधन को चाहिए कि वो इस अवसर का पूरा लाभ उठाएं। फिलहाल दूरदर्शन के लिए दर्शकों को अपने साथ जोड़े रखने के स्वर्णिम अवसर के साथ समय की भी चुनौती है। आने वाला समय ही बता पाएगा कि इसका दूरदर्शन को कितना लाभ मिलेगा।पर फ़िलहाल टीआरपी में दूरदर्शन शिखर पर है।
*सुशील कुमार नवीन,हिसार
(लेखक वरिष्ठ लेखक और शिक्षाविद है)