तबलीग़ी जमात के प्रपंच से कैसे बचेगा भारत

लेख*आर.के. सिन्हा
गैर-मुसलमानों को इस्लाम से जोड़ने और मुसलमानों को सच्चा मुसलमान बनाने के नाम पर कट्टरपंथी और आतंकवादी बनाने के रास्ते पर चलने की शिक्षा देने वाले तबलीग़ी जमात ने भारत की कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग को भारी क्षति पहुंचाई है। सच पूछा जाए तो इन्होंने देश को एक बड़े संकट में डाल दिया है। अब इस कठिन हालातों से देश कैसे निकलेगा यह एक अब बड़ा सवाल है। जब कोरोना के कारण काबा बंद हो गया, मक्का मदीना बंद हो गये,ईसाइयों का तीर्थ स्थल वेटिकन सिटी पर ताले लग गए, मंदिर, मस्जिद गुरूद्वारे बंद हो गए, तब्लीगी जमात दिल्ली के निजामउद्दीन इलाके में हजारों देशी-विदेशी मौलानाओं को इकट्ठा कर अपना जलसा कर रहे थे।
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प्रधानमंत्री की अपीलों को क्यों किया नजरअंदाज
अब इनके हक में दलीलें देने वाले जरा यह तो बताएं कि क्या इन्हें इतनी भी समझ नहीं थी कि जब पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप है और जब देश लॉक डाउन और सोशल डिस्टेनसिंग के दौर से गुजर रहा है, तब ये बेशर्मी से यह सम्मेलन क्यों कर रहे थे। इसके पीछे साजिश क्या थी । भले ही कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि यह सही नहीं है कि तब्लीगी जमात ने भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने की साजिश की । पर कहने वाले तो कह ही रहे हैं कि कि जब सारा देश कोरोना वायरस से एक जुट होकर लड़ रहा है, तब ये जमात हजारों मौलवियों को जुटाकर दिन भर तकरीरें करके सरकार की तरफ से दिए दिशा-निर्देशों की क्यों अनदेखी कर रही थी ? इनकी जमात में सैकड़ों की संख्या में विदेशियों का होना और भी गहरे सवाल खड़ा करता है। इन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहले 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ की धत्ता बताई। अपनी जगह से नहीं हिले। फिर 24 मार्च से तीन सप्ताह के लिए देशव्यापी लॉकडाउन की अपीलों को गंभीरता से लेना भी कत्तई जरूरी नहीं समझा ? प्रधानमंत्री ने दोनों मौकों पर देश को कोरोना वायरस के संक्रमण की ऋंखला तोड़ने के लिए घरों में रहने और कुछ दूसरे नियमों के पालन की हाथ जोड़कर अपील की थी। ऐसी हाथ जोड़कर अपील तो आजतक देश के किसी प्रधानमंत्री ने नहीं की थी। बहरहाल, अब यह सबको पता चल गया है कि तब्लीगी जमात में आए बहुत से लोग कोरोना वायरस की पूरी तरह चपेट में आ चुके हैं। इनमें से कइयों की मौतें भी हो चुकी है। जरा सोचिए कि जो कोरोना के वायरस के शिकार हुए हैं, उन्होंने कितनों को संक्रमित किया होगा। जमात में सात-आठ हज़ार लोग थे। बुलाया तो 12 हज़ार लोगों को गया था जितने लोगों को कोई वाली मस्जिद में रखा जा सकता है । लेकिन, कुछ समझदार लोगों ने अपनी जन बचाने में खैरियत समझी।
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खैर, दिल्ली के निजामउद्दीन इलाके में स्थित इनके मरकज (मुख्यालय) से लेकर देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों में जमात से जुड़े लोगों को आप कुर्ता-पायजामा पहने सात-आठ लोगों से लेकर १२-१५ के झुंड में किसी जगह आते-जाते अक्सर देखते ही होंगें। छोटा पायजामा-लम्बा कुरता बड़ी दाढ़ी और खास तरह से सफाचट मूछें इनकी पहचान है। इनके हाथों में कुछ थैले होते हैं। मुझे कहने दें कि इनकी दशा देख कर ऐसा लगता है कि ये अभी भी अंधकार युग में जीवन बसर कर रहे हैं। तब्लीगी उलेमा दावा करते हैं कि इनका काम इस्लाम पर सही तरीके से चलने की जानकारी देना है। ये जिधर भी जाते हैं तब वहां की मस्जिदों में ही ठहरते हैं। इनका ये भी दावा है कि 1941 में शुरू हुई तब्दीली जमात संसार के 150 से अधिक मुल्कों में फैली हुई है। वैसे इनके आतंकवादी संगठनों से सम्बन्ध के कारण रूस और कजाकिस्तान समेत कई देशों ने जमात को प्रतिबंधित कर रखा है। इनका दावा है की इस जमात से दुनियाभर में 12 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। आप जानकार हैरान होंगे कि जमात की कोई बेवसाइट, अखबार या चैनल नहीं है।
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धर्मनिरपेक्षता की आड़ में देश विरोध
दरअसल तब्लीगी जमात का इतिहास ही बेहद संदिग्ध रहा है। उस पर अलकायदा जैसे संगठन की मदद करने और उससे जुड़े आतंकियों को पनाह देने के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। करीब दो साल पहले हरियाणा के पलवल में बनी एक मस्जिद में आतंकी हाफिज सईद के फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन का पैसा लगने के आरोपों के बाद तब्लीगी जमात खुफिया एजेंसियों के निशाने पर थी। कभी-कभी अफसोस होता है कि हमारे यहां धर्मनिरपेक्षता की आड़ में जब देश विरोधी तत्व सक्रिय रहते हैं और सरकारें जानबूझकर वोट बैंक की राजनीति में अनभिज्ञ ही बनी रहती है।
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खैर,निजामउद्दीन मरकज में जो कुछ हुआ उसके चलते दिल्ली पुलिस ने तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद पर आइपीसी की धारा 269, 270, 271, 120 बी के तहत कार्रवाई की है। पुलिस ने सरकारी आदेश नहीं मानने के मामले में यह मामला दर्ज किया है। उन पर आरोप है कि सरकारी आदेशों से बेपरवाह साद के नेतृत्व में तब्लीगी मरकज में कई हज़ार लोग शरीक हुए थे। मौलाना साद ने अपने तकरीरों में साफ तौर पर कहा था कि मुसलमानों को प्रधानमंत्री की अपील को मानने की जरूरत नहीं हैं । यदि करोना से मरना ही है तो मुसलमानों को यही चाहिए कि वे मस्जिद में ही आकर मरें । महत्वपूर्ण यह भी है कि दारुल उलूम देवबंद भी साद और तब्लीगी जमात पर गंभीर आरोप लगाता रहा है। दारुल उलूम देवबंद जमात के भारत में अध्यक्ष मौलाना साद पर इस्लामिक शरियत के गलत अर्थ समझाने और अल्लाह के पैगम्बरों का अपमान करने के आरोप लगा चुका है। इसके अलावा17 नवम्बर 2011 को तब्लीगी जमात पर विकिलीक्स ने कहा था कि उसकी मदद से भारत में अलकायदा पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। जरा देख लें कि ये आरोप कितने गंभीर हैं।
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कोरोना वायरस के बहाने तब्लीगी जमात का असली चेहरा सामने आ गया। जानलेवा कोरोना ने यही किया है। अब देश को पता चला कि ये कौन है। इनकी मीटिंगों को दुनिया भर की ताकतें सहयोग करती है। ये चाहते हैं कि दुनिया उस दौर में लौट जाए जब इस्लाम उत्पन्न हुआ था । इन्हें समावेशी समाज से नफरत है। ये भारत को भी इस्लामिक देश बनाना चाहते हैं। इन्हें इस्लाम के धर्मनिरपेक्ष पक्ष,जिसे हम सूफी सिलसिले के रूप में जानते हैं, सख्त नामंजूर है। ये कभी किसी सूफी फकीर की दरगाह में सजदा करने के लिए नहीं जाते। निजामउद्दीन में हजरत निजामुद्दीन औलिया और अमिर खुसरों की दरगाहें है। पर मजाल है कि तब्लीगी जमात के सदस्य कभी वहां पर गए हों। ये गंगा- जमुनी संस्कृति से घृणा करते हैं। तब्लीगी जमात तो मुसलमानों को कट्टर बनाने की फैक्टरी चला रह है।
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ये सबको एकरंगी बनाना चाहते हैं। एक मान्यता में ढाल देना चाहते हैं। एकरुपी कर देने का कठिन तप पाले हुये हैं। तब्लीगी जमात ऐसी ही एक खतरनाक बड़ी फैक्टरी का नाम है। इस विषैली सोच से देश को लड़ना होगा। इन्हें मिट्टी में मिलाना होगा। निजामुद्दीन इलाके में तीस साल रहे बीबीसी लन्दन के वरिष्ठ पत्रकार मार्क हली ने एक लेख में यह लिखा था कि मुसलमानों के अन्दर भी विभिन्न मत भारत में कैसे मिलकर रहते हैं यह कोई देखना चाहे तो वह भारत आकर देखे । यदि किसी भी इस्लामिक देश में निजामुद्दी औलिया और तब्दीली मरकज आसपास होते तो तब्दीलियों को दरगाह को नेस्तनाबूद करने में एक दिन भी नहीं लगता । तब्लीगी जमात जैसे संगठनों के लिए भारत जैसे बहुलतावादी देश में कोई जगह हो नहीं सकती। तब्लीगी जमात के खिलाफ लडाई में देश के धर्मनिरपेक्ष मुसलमानों को भी आगे आना होगा। उन्हें इस आस्तीन के सांप को कुचलना होगा। आमतौर पर देखने में आया है कि मुसलमान अपने समाज में व्याप्त कुरीतियों को चुपचाप सहन करते रहते हैं। पर अब वक्त की मांग है कि तब्लीगी जमात जैसे मानववा विरोधी संगठन से लड़ा जाए। ये जानलेवा कोरोना के खतरों के बीच में भी जिस तरह से अपने कार्यक्रम को चला रहा था, उससे साफ है कि इसके इरादे नेक नहीं थे। इसे या सुधरना होगा या फिर धूल में मिल जाना होगा।
*आर.के. सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ संपादक एवं स्तंभकार हैं)
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